Sawan vrat ki katha in Hindi, sawan vrat ki vidhi in hindi


       सावन सोमवार व्रत एवं  सम्पूर्ण कथा 

सावन माह 

धर्म ग्रन्थो के अनुसार सावन माह को सबसे पवित्र माह माना गया है क्योंकि इस माह में भगवान शिव कैलाश से पृथ्वी की ओर आते हैं सोमवार का दिन शिव जी को अति प्रिय होता हैं इस माह में जो भी सावन सोमवार का व्रत करते हैं अथवा कथा पढ़ता हैं सुनता हैं महादेव उसकी सभी मनोकामना को पूर्ण करते हैं 

Sawan vrat ki katha in Hindi, sawan vrat ki vidhi in hindi ,सावन सोमवार व्रत की कथा
महादेव 
                     
   

पूजा की थाली 

पूजा करते समय हमें पूजा की थाली में रोली, चावल, हल्दी, आवेर गुलाल, सुन्दर, कपूर, धूपबत्ती, बेल पत्र, धतुरे के पुष्प, अकाव्य के पुष्प, शहद, कच्चा दूध, भस्म, इत्र, चंदन, मिठाई ( दूध की बनी मिठाई) या खीर, गंगा जल आादि से शिव जी का पूजन किया जाता है याद रहे शिव जी की मूर्ति का विधान नही है शिवलिंग का पूजन किया जाता है महादेव को सफेद और नीले पुष्प ज्यादा प्रिय होते है भूल कर भी लाल पुष्प महादेव को ना चढ़ाये | 

कौन है शिव

सावन सोमवार व्रत की सम्पूर्ण कथा -


एक बहुत ही धनवान साहूकार था जिसके पास धन अादि किसी प्रकार की कमी नही थी परन्तु उसका एक दुख था कि उसका कोई पुत्र नही था वह इस बात से बहुत चिंतित रहता था पुत्र की कामना के लिए वह प्रत्येक सोमवार को शिव जी का व्रत किया करता था सायं काल में शिव मन्दिर मे जाकर शिव जी के श्री विग्रह के सामने दीपक जलाया करता था ऐसी भक्ति को देखकर एक दिन पर्वती जी ने शिव जी से कहा हे स्वामी! यह साहूकार आपका बहुत बड़ा भक्त है यह सदैव आपका व्रत और पूजन बड़ी श्रद्धा भाव से करता है आप इसकी मनोकामना पूर्ण करे | शिव जी ने कहा हे पर्वती! यह संसार कर्म क्षेत्र हैं जैसे किसान खेत में बीज बोता हैं वैसी ही फसल काटता हैं उसी प्रकार इस संसार में जो जैसा कर्म करेगा वो वैसा ही फल भोगता हैं पर्वती ने शिव जी से अत्यन्त अग्रह से कहा हे स्वामी! जब यह आपका अनन्यभक्त हैं और इसको किसी प्रकार का दुख है तो अवश्य दूर करना चाहिए | आप सदैव अपने भक्तो पर दयालु रहते हो और उनके दुखो को दूर करते हो यदि आप ऐसा नहीं करोगे तो मनुष्य आपकी सेवा और व्रत क्यो करेगे|

पर्वती का ऐसा वचन सुनकर शिव जी कहने लगे हे पर्वती! इसका कोई पुत्र नही है इसलिए यह दुखी रहता है इसके भाग्य में पुत्र ना होने पर भी मै इसे पुत्र प्राप्ती का वरदान देता हूँ परन्तु यह पुत्र केवल 12 वर्ष तक ही जिवित रहेगा | इसके पश्चात् इसका पुत्र मृत्यु को प्राप्त हो जायेगा | इससे अधिक में और कुछ नही कर सकता | यह सब बाते साहूकार सुन रहा था इससे उसको ना प्रसन्नता हुई और ना ही दुख हुआ | वह पहले जैसे ही शिव जी का व्रत और पूजन करता रहा कुछ समय बीत जाने के बाद उस साहूकार की स्त्री गर्भवती हुई और 10 वें महीने में उसने एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया | साहूकार के घर में बहुत खुशीयां मनाई गयी |

साहूकार को उसकी 12 वर्ष आयु जानकर उसे अधिक प्रसन्नता नही हुई | जब वह बालक 11 वर्ष का हो गया तब उस बालक की माता ने साहूकार से उसके विवाह के लिए कहा ऐसा सुनकर साहूकार ने विवाह के लिए मना कर दिया और कहने लगा कि उसे काशी जी पढ़ने भेजूगाँ | फिर साहूकार ने उस बालक के मामा को बुलाकर उसे धन देकर बोले कि तुम इसे काशी जी पढ़ने के लिए ले जाओ और रास्ते में यज्ञ करते हुए और ब्राह्मणो को भोजन कराते हुए जाना | और दोनों मामा भांजे ने ऐसा ही किया | रास्ते में एक शहर पड़ा उस शहर के राजा की कन्या का विवाह था और दूसरे शहर के राजा का लड़का विवाह करने के लिए बारात लेकर आया था लड़का एक आँख से काना था उसके पिता को इस बात की चिंता थी कि लड़के को देखकर कन्या के माता-पिता विवाह में किसी प्रकार की अढ़चन पैदा ना कर दे| फिर उसने अति सुन्दर साहूकार के लड़के को देखा तो मन में विचार करने लगा कि क्यों ना दरवाजे के समय इस लड़के से काम चला लिया जाए | फिर लड़के के मामा से बात का और वह राजी हो गया | और फिर साहूकार के लड़के को दरवाजे पर ले गये और सारे कार्य प्रसन्नता पूर्वक हो गए | फिर लड़के के पिता ने सोचा की यदि विवाह कार्य भी इसी लड़के से करा लिया जाए तो क्या बुराई है एेसा विचार करने के बाद वह उस लड़के और उसके मामा से कहा यदि आप फेरो और कन्यादान के काम भी करा दे तो आपकी बड़ी कृप्या होगी और उसके बदले में, मैं आपको बहुत सा धन दूगाँ | फिर उन्होने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया | और विवाह कार्य भी अच्छी तरह से सम्पन्न हो गया परन्तु जिस समय लड़का जाने लगा तो उस समय लड़के ने राजकुमारी के पल्लू पर लिख दिया कि तेरा विवाह तो मेरे साथ हुआ है परन्तु जिस राजकुमार के साथ तुमको भेजेगे वह एक आँख से काना है और मैं काशी जी पढ़ने जा रहा हूँ 

लड़के के जाने के पश्चात जब उस राजकुमारी ने अपने पल्लू पर ऐसा लिखा हुआ पाया तो उसने उस राजकुमार के साथ जाने से मना कर दिया और कहने लगी यह मेरा पति नही है मेरा विवाह इसके साथ नही हुआ है जिससे मेरा विवाह हुआ है वह तो काशी जी पढ़ने गया है राजकुमारी के माता पिता ने कन्या को विदा नही किया और बारात वापस चली गई | 

महादेव कौन है
उधर साहूकार का लड़का और उसका मामा काशी जी पहुँच गए | वहाँ जाकर उन्होने यज्ञ करना और लड़के ने पढ़ना शुरू कर दिया जब लड़के की आयु 12 वर्ष की हो गई | उस दिन उन्होने यज्ञ रच रखा था लड़के ने मामा से कहा मेरी तबियत ठीक नही लग रही तो मामा ने कहा कि अन्दर जाकर सो जाओ और लड़का अन्दर जाकर सो गया और थोड़ी देर बाद लड़के के प्राण निकल गए | जब उसके मामा ने अन्दर आकर देखा तो उन्हें बहुत दुख हुआ और सोचने लगे कि अभी रोना पिटना मचा दूगाँ तो यज्ञ का कार्य अधूरा रहे जायेगा | अत: उसने यज्ञ कार्य को जल्दी से समाप्त कर ब्राह्मणो के जाने के बाद रोना पिटना आरम्भ कर दिया | संयोग वश उसी समय वहाँ से शिव और पर्वती गुजर रहे थे जब उन्होने जोर जोर से रोने की आवाज़ सुनी तो पर्वती जी कहने लगी स्वामी कोई दुखिया रो रहा है उसके कष्ट को दूर किजिए | जब शिव और पर्वती ने पास जाकर देखा तो वहाँ एक लड़का मुर्दा पड़ा था तब पर्वती जी कहने हे स्वामी! यह तो उसी साहूकार का लड़का है जो आपके वरदान से हुआ था शिव जी पर्वती से कहने लगे कि इसकी आयु इतनी ही थी सो यह भोग चुका | तब पर्वती जी कहने लगी हे स्वामी! इस बालक को और आयु दो नहीं तो इसके माता पिता तड़प तड़प कर मर जायेगे | पर्वती जी के बार बार आग्रह करने पर उसे जीवन प्रदान किया | और भगवान शिव जी की कृपा से जीवित हो गया फिर शिव और पर्वती कैलाश चले गए | तब वह लड़का और मामा उसी प्रकार यज्ञ करते तथा ब्राह्मणो को भोजन कराते अपने घर की ओर चल दिये | रास्ते में वे उसी शहर में आए जहाँ उसका विवाह हुआ था वहां पर आकर उन्होने यज्ञ आरम्भ कर दिया तो उस लड़के के ससुर ने उसको पहचान लिया और अपने महल में ले जाकर उसकी बड़ी ख़ातिर की साथ ही बहुत दास दासियो सहित आगर पूर्वक लड़की और जमाई को विदा किया | जब वे अपने शहर के निकट आए तो मामा ने कहा मैं पहले तुम्हारे घर जाकर खबर कर आता हूँ | जब उस लड़के का मामा घर पहुँचा तो उस लड़के के माता पिता घर की छत पर बैठे थे और यह प्रण कर रखा था कि यदि हमारा पुत्र सकुशल लौट आया तो हम राजी खुशी नीचे आ जायेगे नही तो छत से गिरकर अपने प्राण त्याग देंगे | इतने में उस लड़के के मामा ने आकर यह समाचार दिया कि आपका पुत्र आ गया है तो उनको विश्वास नही आया तब उसके मामा ने शपथ पूर्वक कहा कि आपका पत्र अपनी स्त्री के साथ बहुत सारा धन लेकर आया है तो साहूकार ने आनन्द के साथ उसका स्वागत किया | ओर बड़ी प्रसन्नता के साथ रहने लगा | इसी प्रकार से जो कोई भी सोमवार के व्रत को धारण करता है अथवा इस कथा को पढ़ता हैं महादेव उसकी समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं 


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